सत् बचन महाराज

August 8, 2018
नौजवानी की बात है, एक सुबह मैं घर से निकल कर भटकता सा स्कूल वाले चौक के दहाने पर पहुंचा तो वहां मुझे अपने तीन चार स्कूलमेट दिखाई दिये जो कि एक युवक को घेरे खड़े थे । कुर्ता-पाजामाधारी उस युवक में मुझे कुछ गैरमामूली दिखाई दिया तो वो ये था कि उसके माथे पर भवों के बीच और दोनों कानों की लौ पर चन्दन का टीका था और दायें हाथ में एक आतशी शीशा (मैग्नीफाइंग ग्लास ) था ।
मैंने इशारे से एक दोस्त से सवाल किया कि क्या माजरा था ।
“ज्योतिषी हैं ।” - जवाब मिला - “हाथ देख रहे हैं । अच्छे मौके पर आया । तू भी दिखा ले ।”
मैंने ऐसा कोई उपक्रम न किया ।
ज्योतिष में, राशिफल में, भविष्यवाणी में मुझे कोई विश्वास नहीं था ।
“पंडित जी, इसका भी हाथ देखो ।”
मैं एक कदम पीछे हट गया ।
“अबे, दिखा न ! हाथ पढने का नतीजा तेरे हलक में तो नहीं धकेला जाने वाला । न मन माने तो न मानना ।”
हिचकिचाते हुए मैंने हाथ आगे बढ़ाया ।
“हस्तरेखाओं का अध्ययन विज्ञान है ।” - युवक बोला - “विज्ञान में अनास्था नादानी है ।”
मैं खामोश रहा ।
उसने मेरा हाथ थामा और आतशी शीशे में से उस पर निगाह गड़ाई ।
“विकट रेखायें हैं ।” - वो बुदबुदाया - “असाधारण जान पड़ती हैं । इसलिये जो तुरत परिणाम है, वो भी असाधारण है । सुनोगे ?”
मैंने ऊपर नीचे सिर हिला कर हामी भरी ।
“न कभी घर में इज्जत होगी, न घर से बाहर होगी ।”
मैंने यूं चिहुंक कर हाथ वापिस खींचा जैसे सूरज की किरणें आतिशी शीशे के जरिये फोकस हो कर मेरी हथेली जलाने लगी हों ।
उस के बाद मैं वहां ठहरा ही नहीं । उस एक भविष्यवाणी ने मुझे हिला दिया था ।
कितना ही अरसा गाहे-बगाहे वो एक फिकरा मेरे कानों में बजता रहा ।
न कभी घर में इज्जत होगी, न कभी घर से बाहर होगी !
बाद में जैसी जिंदगी मेरे सामने आती-आती रही, आज भी आ रही है - उसमें उस फिकरे का कड़वा सच बार-बार, बार बार मेरे वजूद से एक टकराया, बार-बार उसने अपनी हकीकी हाजिरी लगाई और मुझे हैरान किया । कई बार मायूसी से मैंने सोचा कि मैं उस युवा हस्तरेखा विशारद की और सुनता, कई बार इस अरमान ने मन में दस्तक दी कि वह मुझे फिर मिल जाए और मैं उससे अपनी बाबत और सवाल करूं ।
कैसे मिल जाता !
क्या पता कौन था, कहां से आया था, कहां चला गया !
लेकिन इसका मतलब क्या हुआ ? मेरा खयाल हिल गया ? मुझे ऐसी बातों पर यकीन आने लगा?
हरगिज नहीं ।
कितनी पत्र-पत्रिकायें थीं जिन में दैनिक, साप्ताहिक, मासिक - बल्कि वार्षिक - 12 राशियों पर आधारित भविष्य-दर्शन के कॉलम छपते थे ! वार्षिक भविष्य का विवेचन करने वाले मोटे मोटे ग्रंथ छपते थे और यूं कितने ही भविष्यवक्ता महानुभावों की हैसियत फिल्मस्टार जैसी हो गई थी । उन पर विश्वास करने वाले उन्हें भगवान के समकक्ष रखते थे । लेकिन मुझे वह सब पाखंड जान पड़ता था, खुद को भरमाने का - बल्कि धोखा देने का - जरिया जान पड़ता था ।
कैसे दुनिया के करोड़ों-अरबों लोगों का भविष्य सिर्फ 12 किस्म का हो सकता था ! कभी किसी भविष्यवक्ता ने कहा कि फलां कुंभ राशि फलां दिन बस के नीचे आकर मर जाएगा या टेररिस्ट अटैक का शिकार होगा ? तरक्की और खुशहाली के लिए जो नायाब टोटका औरों को बताया, कभी खुद पर या अपने घर वालों पर आजमाया ? क्यों पंडित जी को नहीं मालूम होता कि उनको दिल का दौरा पड़ने वाला था या किडनी फेल होने वाली थी या लिवर जवाब दे जाने वाला था ?
यही सवाल उनसे किया जाए तो फैंसी जवाब मिलेगा:
- स्विच बिजली नहीं बनाता, रास्ता बनाता है जिसके जरिये बिजली उपकरण तक पहुंचती है और उसे चालू करती है; बल्ब तक पहुंचती है, उसे जलाती है । हम स्विच हैं, तुम बल्ब हो, ईश्वरीय अनुकंपा या प्रकोप बिजली है ।
- बारिश को नहीं रोका जा सकता लेकिन छतरी दे कर प्राणी को भीगने से बचाया जा सकता है । बारिश ईश्वरीय विपत्ति है, तुम उस विपत्ति से ग्रस्त हो सकते हो, हमारा ज्ञान छतरी है जो विपत्ति से तुम्हारी रक्षा करेगा ।
- नेविगेटर जहाज नहीं चलाता, दिशाज्ञान देता है । तुम्हारा दर्जा जहाज का है और हमारा नेविगेटर का । हमारा काम तुम्हें बताना है, खबरदार करना है कि तुम्हारे रास्ते में तूफान किधर है ।
लेकिन फिर उपाय भी बताते हैं बराबर । पहले उस विपत्ति का हौवा खड़ा करते हैं जो आइंदा आने वाली है फिर निवारण के लिए खर्चीला यज्ञ या जाप बताते हैं जो जजमान के लिए वो करेंगे क्योंकि:
- जजमान के पास टाइम नहीं ।
- वह पद्धति से अवगत नहीं ।
- नातजुर्बेकारी में वह गलती कर सकता है जिस से विपत्ति दोबाला हो सकती है ।
जजमान सब कुछ करता है ।
विपत्ति फिर भी आती है - इसलिये आती है कि ऊंचनीच हर मानव जीवन में होती है, न कि इसलिए क्योंकि पंडित जी ने, आचार्य जी ने, श्री श्री जी ने ऐसी भविष्यवाणी की थी - जजमान डरते झिझकते शिकायत करता है तो बिना झिझके पंडित जी निवारण के लिए नया उपाय करने की राय देते हैं और नयी - पहले से बड़ी - रकम की मांग करते हैं ।
जो जजमान सहर्ष देता है ।
अंजाम से खौफ खाया शख्स ऐसा ही होता है ।
आइंदा विपत्ति नहीं आती तो इसलिये क्योंकि कोरम काल हो गई है, विपत्तियों का, आपदाओं का आप का कोटा पूरा हो गया है लेकिन यश पंडित जी पाते हैं ।
कोई जजमान आकर कहे - ‘पंडित जी मुसीबत में हूं, संकट में हूं, दुखी हूं’ तो क्या पंडित जी उसे बोलते हैं कि सब नॉर्मल है, स्वाभाविक है क्योंकि दो सुखों के बीच का वक्फा दुख कहलाता है और दो दुखों के बीच का वक्फा सुख होता है । कहते हैं कि अगर तुम दुख में हो तो समझो कि सुख मोड़ पर खड़ा है, बस आने ही वाला है, अगर तुम सुख में हो तो समझो कि अब दुख की विजिट ड्यू है, उसका बहादुरी से मुकाबला करने के लिये कमर कस लो ? याद रखो, सब दिन जात न एक समान !
ऐसी राय देने वाले पंडित को मोटी दक्षिणा तो क्या, कोई झुनझुना भी नहीं देगा । कम्बख्त जजमान को राय नहीं चाहिए, उसे करतब चाहिए जो वह उम्मीद करता है कि पंडित जी करके दिखाएंगे, कोई करिश्मा चाहिए जिसके इंतजार में वह आचार्य जी, श्री श्री जी के आगे नतमस्तक है ।
इस कारोबार का असली विशेषज्ञ वही पंडित होता है जो कि जजमान के मन में भविष्य की ऐसी टैरर खड़ी कर सकता है कि जजमान को पंडित जी में ही पनाह दिखाई देती है । जो यह कहते हैं कि पैसे का क्या है, बच्चा, वो तो हाथ का मैल है । अब मैल को तिलांजलि देने में भी कहीं कोई गुरेज करता है !
मेरी समझ से बाहर है कि कैसे अपने भविष्यवक्ता की राय पर अमल कर के कोई अपने नाम की स्पेलिंग बदल ले - ‘ई’ की जगह कोई दो ‘ई’ लगाना शुरु कर दे या नाम में से ‘यू’ गायब कर दे या स्पेलिंग ऐसी बना ले कि किसी के बाप की समझ में न आए कि उस का उच्चारण क्या होगा - तो उज्जवल भविष्य के सारे द्वार एक ही बार में उसके सामने खुल जाएंगे ।
- फलां मंदिर तक घर से नंगे पांव जाने से भाग जाग जाएंगे ।
कोई भविष्यवक्ता के हुक्म पर ऐसा करने की जगह श्रद्धावश ऐसा करे तो जागने की जगह भाग जरूर छुट्टी पर चले जाएंगे ।
पादरी ने बच्चे से कहा - “वह जगह बता जहां गॉड है, मैं तुझे एक डॉलर दूंगा ।”
जवाब में बच्चे ने कहा - “फादर, आप वह जगह बताओ जहां गॉड नहीं है, मैं आपको दस डॉलर दूंगा ।”
- कोई औरत भोर भये सर्वदा नग्न होकर चौराहे पर झाड़ू दे तो शर्तिया लड़का होगा ।
- सिर मुंडा कर भगवान के दर्शन करने से सर्वोत्तम फल मिलता है ।
मूंड मुंडाए हरि मिले, सब कोई लेहि मुंडाय,
बार-बार के मूंडने, भेड़ बैकुण्ठ न जाय ।
मेरे एक प्रकाशक में वृद्धावस्था में खड़े पैर भक्ति भाव जागा और वो न सिर्फ रोज जाकर सत्संग में बैठने लगा, सत्संग को ओढ़ने बिछाने लगा । फोन पर ‘हल्लो’ की जगह ‘हरिओम’ बोलने लगा, गुरु जी की वाणी वाकिफ लोगों को जबरन फोन करके सुनाने लगा, अपने ऑफिस में अपनी पीठ पीछे से चंदन का हार चढ़ी अपने स्वर्गवासी पिता की तस्वीर हटाकर गुरु जी की तस्वीर लगा ली लेकिन अपनी इस नामाकूल मान्यता को त्याग देने का कभी खयाल न किया कि बेईमानी बिना धंधा नहीं हो सकता तथा बीच-बीच में कभी कभार गंगा स्नान कर आने पर पिछली सारी बैलेंस शीट एडजस्ट हो जाती है और व्यापारिक कर्मों की लेजर का नया, कोरा पन्ना खुल जाता है जिस पर आइंदा बेईमानियों को रुपए आने पाइयों की तरह दर्ज किया जाता है ।
बाबा नानक कहते हैं:
अठ सठ तीरथ नहाइये, उतरे न मन का मैल ।
कबीर जी कहते हैं:
नहाये धोये क्या भया, जो मन मैल न जाये,
मीन सदा जल में रहे, धोये बास ना जाये ।
और गंगा स्नानी, सत्संगी सज्जन कहते हैं:
नानक हू ? कबीर कौन ?
हमारे एक प्रधानमंत्री इतने एस्ट्रालोजी डिपेंडेंट थे कि जब तक एक नहीं, दो नहीं, आधे दर्जन नजूमियों से मशवरा नहीं कर लेते थे, कदम नहीं उठाते थे । इतने खबरदार प्रधानमंत्री 5 साल की टर्म में 6 महीने भी कुर्सीनशीन न रह सके, 170 दिन में उनकी सरकार गिर गई ।
मेरी नौकरी के दौर में मेरे चीफ मैनेजर के जवान लड़के को जब कैंसर डिटेक्ट हुई तो वह थर्ड स्टेज पर थी । टॉप के स्पेशलिस्ट्स ने कह दिया था कि बचने की कोई सूरत नहीं थी । किसी श्री श्री ने राय दी कि अगर 11 पंडित बैठ कर एक लाख एक बार गायत्री मंत्र का जाप करते तो लड़का बच सकता था ।
पिता मजबूर, जिसकी आंखों के सामने उसका जवान बेटा जा रहा था ।
जमा डूबते को तिनके का सहारा ।
एक मोटी फीस भर कर उसने उस आयोजन का इंतजाम किया ।
जिस शाम उस आयोजन का समापन हुआ, उसी रात लड़के का स्वर्गवास हो गया ।
एक फिल्म पत्रिका के प्रकाशक महोदय मेरे परिचित हैं जिन्हें किसी पहुंचे हुए श्री श्री ने खास हाथ की खास उंगली में खास नग पहनने की राय दी ।
उन्होंने राय पर अमल किया ।
तीसरे दिन उन्हें उन्हें भीषण दिल का दौरा पड़ा ।
बकौल खुद उन के, जब नर्सिंग होम में उन्हें होश आया तो सब से पहले उन्होंने वो भागजगाऊ अंगूठी ही उतार कर फेंकी ।
साठ के दशक के उत्तरार्ध में मेरा एक प्रकाशक था जो कि खुद ब्राह्मण था । उसका पॉकेट बुक्स का कारोबार कदरन नया था लेकिन मन में तरक्की करने के अरमान बहुत थे । उसने मेरे अभी सात-आठ उपन्यास छापे थे जो कि उसके पास अच्छे चले थे, लिहाजा बतौर लेखक उसे मेरे में अपने 
प्रास्पेक्ट्स दिखाई दे रहे थे । एक बार वो मेरे घर में आया और मेरी जन्मपत्री मांग कर ले गया । मेरी मां ने कहा कि हमारी तरह ब्राह्मण था, शायद मेरा कहीं रिश्ता कराना चाहता था । दो दिन बाद अपने मुलाजिम के हाथ मुझे जन्मपत्री वापस भिजवा दी । मेरे को बहुत उत्सुकता थी जानने की कि आखिर वो जन्मपत्री क्यों ले गया था ।
आखिर मुझे इस बाबत उससे सवाल करना पड़ा ।
जवाब मिला कि उसने अपनी और मेरी पत्री यह जानने के लिए पंडित जी से मिलवाई थी कि क्या बतौर लेखक-प्रकाशक वह जुगलबंदी कामयाब हो सकती थी !
पंडित जी से जवाब मिला था कि नहीं हो सकती थी ।
तभी वो बतौर लेखक मेरे से विरक्त हो गया था ।
आज पॉकेट बुक्स के धंधे में उसका मुकाम कहीं नहीं है, मिलता है तो मेरे से सवाल करता है मैंने इतनी फिनॉमिनल तरक्की कैसे कर ली !
जो जवाब मैं उसे कभी न दे सका, वह यही था कि मैंने कभी किसी प्रकाशित की पत्री अपनी पत्री से मिला कर उस के लिये उपन्यास नहीं लिखा था ।
भारत के एक बहुत ही बड़े भविष्यवक्ता थे जिनसे 80-90 के दशकों में बड़े, बड़े नेता, अभिनेता मशवरा करते थे । उन दिनों इंडिया की क्रिकेट टीम विदेश दौरे पर जाने लगी तो एक नैशनल डेली में उन की भविष्यवाणी छपी कि टीम बड़ी शान से पांच मैचों की टैस्ट सीरीज जीतकर लौटेगी ।
टीम सारे मैच हार कर, पांच-जीरो का स्कोर बना कर लौटी ।
क्या महान ज्योतिषी जी ने उस वजह से कोई परेशानी महसूस की ?
बिल्कुल भी नहीं ।
उलटे बाजरिया मीडिया बयान जारी किया कि उनकी भविष्यवाणी की गणना का, उसके आकलन का आधार वह समय था जिस पर भारतीय विमान ने विदेश के लिए टेक ऑफ करना था, उन्हें बाद में - टीम के हार की शर्म से मुंह लटकाये लौट आने के भी बाद - पता चला था कि हवाई जहाज उस वक्त पर नहीं उड़ा था, वह लेट हो गया था, आधा घंटा लेट उड़ा था और वस्तुत: उन की भविष्यवाणी गलत हो जाने की वजह फ्लाइट का लेट हो जाना थी । जहाज टाइम पर उड़ा होता तो टीम यकीनन जीत  कर आती ।
आपको कैसी लगी ये लॉजिक ?
एक बाबा थे जो मचान पर रहते थे और मचान से नीचे टांग लटका कर भक्तों के सिर पर पांव रख कर आशीर्वाद देते थे । कांग्रेस शासन के दौरान एक केंद्रीय मंत्री की उन पर बड़ी आस्था थी । जब जनरल इलेक्शन का दौर था तो मंत्री जी ने तद्कालीन कांग्रेसी प्रधानमंत्री जी को मचान वाले बाबा के बारे में बताया और मनुहार की कि अगर वह भी बाबा का आशीर्वाद पायें तो निश्चय ही कांग्रेस भारी मेजोरिटी से जीतेगी । काफी ना नुक्कर के बाद पीएम साहब मचान वाले बाबा का आशीर्वाद पाने को तैयार हो गए । बाबा का पांव उन के सिर पर वाली तस्वीरें सारे नेशनल डेलीज़ में छपीं ।
उस बार के इलेक्शन में कांग्रेस की तब तक की सबसे बुरी हार हुई ।
मेरे एक साढू साहब की इन बातों में भरपूर आस्था थी । ऊपर से एक समधी ऐसा मिल गया जो कर्मकांडी ब्राह्मण था और ज्योतिष विद्या में प्रवीण बताया जाता था । एक बार उनके घर में कोई फंक्शन था जिसमें शामिल होने के लिए मैं सपरिवार चंडीगढ़ गया था जहाँ कि वो रहते थे । स्वाभाविक तौर पर वहां घर में और भी मेहमान जमा थे जिनमें उनके ज्योतिष प्रवीण समधी साहब भी थे । एक दोपहर को जब कि मैं उनकी बालकनी में धूप में खड़ा था, मेरे साढू साहब आए और मुझे हुक्म दनदनाया - “चलो ।”
“कहां ?” - मैं सकपकाया ।
“मेरे समधी के पास ।”
“क्यों ?”
“चल के हाथ दिखाओ उन्हें अपना ।”
“लेकिन मुझे इन बातों में विश्वास नहीं है ।”
“फिर भी दिखाओ । ये एडवांस बेल कराने जैसा काम होता है । चलो ।”
मैं नहीं गया ।
वह बहुत नाराज हुए । जाकर मेरी बीवी को - अपनी साली को - बोले कि मैंने उनके समधी की - जो कि भीतर कमरे में बैठा वार्तालाप सुन रहा था - तौहीन कर दी थी ।
क्या तौहीन कर दी थी ?
भविष्य जानने का अभिलाषी बन कर मैं उनके हुजूर में पेश नहीं हुआ था ।
यानी भविष्य जानना है तो जानना पड़ेगा, आप को डंडे से जनवाया जाएगा, आप कौन होते हैं कहने वाले आप भविष्य नहीं जानना चाहते, अपने अनकिये गुनाहों की अग्रिम जमानत नहीं करवाना चाहते !
बतौर फैन एक महिला ने मुझे 8 पेज की चिट्ठी लिखी जिसका अहम मकसद इस बात को दाखिलदफ्तर करना नहीं था कि वह मेरे नॉवेल पढ़ती थीं और उन्हें खूब पसंद करती थीं बल्कि यह था कि कितनी विद्वान थीं, ज्योतिष विशारद थीं, भविष् द्रष्टा थीं, वगैरह-वगैरह थीं । अपनी 8 पेज की चिट्ठी में उन्होंने मेरे भूत और भविष्य के बारे में विस्तार से कुछ ऐसी बातें लिखीं जो कि इत्तफाक से - रिपीट इत्तफाक से, क्योंकि उन से मेरी ज्योतिष में आस्था तो बन नहीं गई थी या बन जाने वाली नहीं थी - जिनमें से एक बात यह भी शामिल थी कि मेरी 52 साल की अवस्था में, जिसमें अभी 8 साल बाकी थे, मेरे ऊपर एक गंभीर स्वास्थ्य संबंधी विपत्ति आएगी ।
वो बात सच साबित हुई थी फिर भी उसकी बातों ने मेरे पर कोई स्थाई प्रभाव न छोड़ा, बीवी को बहुत प्रभावित किया, उसने मुझे प्रेरित किया कि मैं उसे चिट्ठी का जवाब दूं और और बातें पूछूं ।
जवाब तो मैंने अपनी रूटीन के तौर पर दिया लेकिन ‘और बातें’ न पूछीं ।
फिर ऐसा इत्तफाक हुआ कि उनसे मेरी मुलाकात हो गई । मालूम पड़ा कि पति नहीं था लेकिन दो जवान बेटे थे जो कि कॉलेज में पढ़ते थे ।
और मालूम पड़ा कि घूंट की रसिया थीं ।
वह एक कॉमन बांड था जिसने वाकफियत को किसी हद तक दोस्ती में तब्दील किया । तब उन्होंने कई चमत्कारी बातें अपनी बाबत मुझे बताई जिनमें से ज्यादातर पर तो मैं ऐतबार ही न कर सका, लेकिन दो का जिक्र मैं यहां पर फिर भी करना चाहता हूं:
बकौल उन के शादी के बारे में उन्होंने अपने माता पिता को चेताया था कि वह उसकी कहीं भी शादी करें, कितनी भी ठोक बजा कर शादी करें, 5 साल के भीतर उसका विधवा हो जाना उसकी हथेली की लकीरों में लिखा था ।
उन्हें अपनी खुद की मौत की तारीख और वक्त मालूम था जो कि उन्होंने अपनी डायरी में ‘मेरी मौत’ के अंतर्गत लिख कर रखा हुआ था ।
अब मेरा उनसे कोई लिंक बाकी नहीं है । जब था तब मालूम पड़ा था कि बच्चे अमेरिका में सैटल हो गए थे, लिहाजा कोई बड़ी बात नहीं थी कि वह भी अमेरिका जाकर रहने लगी हों ।
‘मौत की तारीख’ अभी आनी है या आ चुकी है, मुझे कोई खबर नहीं ।
एक दो बार वो हमारे घर भी आयीं तो मेरी बीवी ने उनसे हमारी बेटी के बारे में सवाल किये । जवाब में उन्होंने बताया कि बेटी थोड़ी सी मंगलिक थी इसलिये शादी की नौबत आने से पहले ही इस सिलसिले में कोई उपाय करना जरूरी था ।
उपाय के खाते में उन्होंने वही स्टैंडर्ड तरीका पेश किया जो जजमान को छीलने के लिए व्यापक तौर पर इस्तेमाल होता था ।
अनुष्ठान करना होगा जो कि वह करेंगी और केवल काम आने वाली सामग्री के लिए 3000 रुपये (सस्ते जमाने में) चार्ज करेंगी । मैं बिल्कुल हक में नहीं था लेकिन बीवी की जिद पर 3000 रुपये अदा किये । अनुष्ठान हुआ या नहीं हुआ, कभी मालूम न पड़ा । उन की बात पर ही यकीन लाना पड़ा कि हुआ और अब बेटी की शादी के रास्ते में कोई रुकावट नहीं थी ।
हमने लड़का तलाश किया, बीवी ने फिर से राय मांगी । उसने 2 दिन में क्लीन चिट दी कि रिश्ता सर्वदा उपयुक्त था, लड़की सदा सुख पायेगी ।
शादी 2 महीने न चली ।
बीवी ने गुस्से में मैडम को शिकायत की तो मैडम ने बड़ा गुस्ताख जवाब दिया:
“आपने मुझे वो दिशा नहीं बताई थी जिस में लड़की ने जाना था । वैसे मेरे लेखेजोखे के मुताबिक सब कुछ ठीक था लेकिन वह दिशा उचित और उपयुक्त नहीं थी जिसमें आखिर लड़की गई थी ।”
“अगर ये बात इतनी अहम थी तो आप ने क्यों न पूछी ?”
“हमारे ध्यान में न आयी । हमारा शेड्यूल इतना बिजी होता है, मंत्रियों की गाड़ियां हमें लिवाने के लिये आती हैं, इतनी मुश्किल से आपके लिए टाइम निकाला था, दिशा के बारे में पूछने का ध्यान न आया । पर आपको खुद तो बताना चाहिये था कि नहीं बताना चाहिए था !”
बताया होता तो कह देतीं कि ससुराल में लड़के के बैडरूम की खिड़की का रुख चढ़ते सूरज की तरफ नहीं था इसलिए शादी में विघ्न आया, लड़की के पिता ने अपने कोट की जेब में लाल रुमाल नहीं रखा था, इसलिए गड़बड़ हुई, लड़की ने विदाई के वक्त बायां पांव पहले उठा दिया जबकि दायां उठाना था, वगैरह ।
महाज्ञानी अंतर्यामी भविष्यदृष्टा जजमान को कुछ भी कह सकते हैं, कैसे भी कह सकते हैं, जजमान से यही अपेक्षित होता है कि वह आंखें मूंद कर सादर सिर को ऊपर से नीचे हिला कर, वांछित दान दक्षिणा की फौरन अदायगी कर के अपनी आस्था का प्रमाण दे । सवाल करना तो दूर खयाल तक न करे जब श्री श्री कहें:
“बच्चा, तेरे चौथे घर में शाहरुख बैठा हुआ है, छठे पर सलमान की कुदृष्टि है और दोनों पर रितिक की छाया है । निवारण अक्षय कुमार के आवाहन से हो सकता है जिस के लिये अनुष्ठान करना पड़ेगा । यह सकल सामग्री की सूची है.....”
मथुरा से एक आचार्य जी की चिट्ठी आई जिन्होंने बताया कि वो मेरे प्रेमी पाठक थे, निस्वार्थ मेरे लिये कुछ करना चाहते थे इसलिये मैं उन्हें अपनी जन्मपत्री की फोटोकॉपी प्रेषित करूं ।
बीवी की मनुहार पर मैंने ऐसा किया ।
जवाब में मेरे भविष्य का विस्तृत विवरण आया और सलाह आयी कि मेरे को फला मंत्र के नियमित जाप की जरूरत थी जिस का इंतजाम मेरे लिए वो कर सकते थे । साथ में कोई चार पृष्ठों में फैली 80-85 आइटमों की लिस्ट थी जिनकी  इस्तेमाल में आने वाली मिकदार और उसकी कीमत लिस्ट में दर्ज थी । करिश्मा उन आइटमों की कीमत के ग्रैंड टोटल में था जो न कम न ज्यादा, पूरा एक हजार रुपया था ।
साथ में हजार रुपये की उन को अदायगी के लिए पहले से भरा हुआ डाकखाने का फार्म था ।
कितना खयाल किया था आचार्य जी ने अपने प्रिय लेखक का !
उसने मनीआर्डर फॉर्म भरने की ज़हमत भी नहीं करनी थी, बस हजार रुपये फार्म के साथ में नत्थी करने थे और फार्म डाकखाने भिजवा देना था ।
अब सोचिये वो हवन सामग्री हजार रुपए कीमत की ही क्यों थी ?
क्योंकि तब बाजरिया मनीआर्डर डाकखाने से रकम भेजने की लिमिट हजार रुपये होती थी । आज की तरह लिमिट दो हजार होती तो यकीनन लिस्ट की आइटमों की कीमत दो हजार होती और भरे हुए मनी आर्डर फार्म में भी दो हजार रुपये दर्ज होते ।
ऐसे करते हैं प्रेमी पाठक अपने प्रिय लेखक की निस्वार्थ, निशुल्क सेवा ।
मेरे रीडर से बने एक दोस्त का अपना सगा साला हस्तरेखा विशारद तो था ही, तांत्रिक विद्याओं का भी विशेषज्ञ होने का उसका दावा था ।एक शाम दोस्त साले को साथ लेकर घर में आया और मुझे मजबूर किया कि मैं साले को अपना हाथ दिखाऊं । ‘अतिथि देवो भवः’ की जिम्मेदारी के तहत मैंने हाथ दिखाया । आखिर वो मेरा भविष्य बांच सकता था, उसे खातिर में लाने के लिए मुझे मजबूर नहीं कर सकता था ।
साले ने सबसे पहले टेलकम पाउडर की मांग की ।
मैंने पाउडर का डिब्बा उसके हवाले किया तो उसने पाउडर मेरी हथेली पर छिड़क कर मसला । तब मैंने महसूस किया कि यूं बारीक लकीरें भी बेहतर देखी जा सकती थीं । उसने काफी देर लकीरों का अध्ययन किया और फिर गंभीरता से फैसला सुनाया - “भविष्य में समस्याएं तो हैं लेकिन ऐसी कोई नहीं जिसका निवारण न हो सकता हो, बल्कि ये कहना होगा कि आसान निवारण न हो सकता हो ।”
जो आसान निवारण उसने प्रस्तावित किया वो ये था कि मैं अपने घर के बैकयार्ड के एक कोने में एक खड्डा खोदूं, विस्की की एक बोतल मुहैया करूं और हर रोज सुबह एक महीने तक एक ढक्कन विस्की उस खड्डे में डालूं ।
“एक महीने बाद क्या होगा ?” - मैंने पूछा ।
“भविष्य की समस्याओं का निवारण होगा ।”
“समस्याओं पर, उन की किस्म पर कोई प्रकाश डालिये ।”
“वो वक्त आने पर समस्याएं खुद डालेंगी ।”
मेरा दिल चाहा कि मैं विस्की के ब्रांड के बारे में भी पूछूं क्योंकि कि शायद बेहतर ब्रांड से बेहतर फल मिलता हो, स्कॉच डालने से शायद खड्डा बलिहार ही हो जाता हो ।
मैंने मेहमान की इज्जत रखी, ऐसा कोई सवाल नहीं किया ।
अलबत्ता खड्डे में विस्की डालने से मुझे कोई गुरेज न हुआ ।
उस खड्डे में नहीं जो मेहमान ने सुझाया था ।
उस खड्डे में जो नाक के नीचे होता है ।
बहरहाल मुद्दा ये था कि आप के खादिम की इज्जत न घर में न घर से बाहर ।
सत् बचन महाराज ।
 

'HeeraFeri'

November 1, 2017

'हीराफेरी' के 'लेखकीय' ने मेरे पाठकों को उपन्यास से भी ज्यादा प्रभावित किया । कितने ही पाठकों ने कबूल किया कि वो लेखकीय पढ़ने से पहले उन्हें वसीयत का कभी ख्याल ही नहीं आया था और उन्होंने लेखकीय ...


Continue reading...
 

Insaf Do

September 15, 2017

‘इंसाफ दो’ के प्रति पाठकों की राय

उपन्यास के अंत से मेरे अधिकतर पाठकों को शिकायत हुई । उन्हें यह बात हजम नहीं हुई कि हैसियत वाले अपराधियों को, गंभीर, जघन्य अपराध के अपराधियों को कोई सजा न हुई । ...

Continue reading...
 

Interview

April 20, 2017

सुरेन्द्र मोहन पाठक से एक साक्षात्कारः

1. आप ने लिखना कैसे शुरू किया, यानी शौक़िया या पैसों की ख़ातिर?

# लिखना शौकिया शुरू किया। पैसे का तो सवाल ही नहीं था। जिस दौर में मैंने लिखना शुरू किया था, उ...


Continue reading...
 

Down the Memory Lane

February 10, 2017

JAGJIT SINGH AS I KNEW HIM IN OUR COLLEGE DAYS

DAV College in those days was out of Jullundur Township and the new hostel was across the road from the college. The hostel was a massive; double-storey, stand alone, rectangular building with hundreds of rooms housing some seven hundred students. The occupant of one such room on first floor, facing GT road was a handsome, strapping young sikh from Ganganager known as Jagjit Singh pursuing his B.Sc. with me. So, we were not only hostelmates but ...


Continue reading...
 

Kaatil Kaun

September 5, 2016

‘कातिल कौन’ के प्रति पाठकों की राय :

- हनुमान प्रसाद मुंदड़ा को कातिल कौन ‘परफेक्ट, आइडियल, शानदार, ऐन मेरी पसन्द का’ लगा । बकौल उन के काफी समय बाद उन को कोई बढ़िया थ्रिलर (मर्डर मिस्ट्री नहीं) पढ...


Continue reading...
 

Crystal Lodge

October 23, 2015

'क्रिस्टल लॉज' पाठकों की राय में

- मेलबोर्न, ऑस्ट्रेलिया से सुधीर बड़क ने ‘क्रिस्टल लॉज’ को मेरा ‘जमीर का कैदी’ तिकड़ी के बाद से अब तक का सबसे अच्छा उपन्यास बताया है । उन्होंने इस उपन्यास के जरिय...


Continue reading...
 

Feedback 'Goa Galaata'

March 17, 2015

गोवा गलाटा पाठकों की राय में

जालंधर के जोधा मिन्हास को गोवा गलाटा बहुत सुन्दर उपन्यास लगा और वो उपन्यास की तेज रफ्तार से खास तौर से प्रभावित हुए । बकौल उन के, उपन्यास उन्होंने पूरी रात में ब...


Continue reading...
 

Feedback 'Jo Lare Deen Ke Het' - 2

November 3, 2014

मैंने अपने पिछले वृतांत में आपको ‘जो लरे दीन के हेत’ के बारे में पाठकों की राय से अवगत कराया था । उस लेख में एक खास तारीख तक की चिट्ठियों और मेल का समावेश था । अब पेशे खिदमत है उपन्यास के बारे म...


Continue reading...
 

Feedback 'Jo Lare Deen Ke Het'

October 9, 2014

मैं खेद के साथ लिख रहा हूं कि ‘जो लरे दीन के हेत’ के माध्यम से विमल को वो मुक्तकंठ प्रशंसा न प्राप्त हो सकी जो कि हार्पर कॉलिंस से प्रकाशित मेरे पिछले उपन्यास ‘कोलाबा कांस्पीरेसी’ में जीतसि...


Continue reading...
 

About Me


e-mail: smpmysterywriter@gmail.com

Make a free website with Yola